भारत में Rare-earth-free Ev मोटर्स की टेस्टिंग तेज़, चीन के निर्बंध के बाद उत्पादन एक साल में हो सकता है

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। चीन द्वारा rare earth (दुर्लभ पृथ्वी धातुओं) के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों के बाद अब भारत rare-earth-free मोटर्स (मोटर्स जिनमें rare earth magnets का इस्तेमाल नहीं होता) की टेस्टिंग तेज़ी से कर रहा है। इस पहल का मकसद है विदेशी निर्भरता कम करना और EV उत्पादन में सुस्ती से बचना।

फरिदाबाद की कंपनी Sterling Gtake E-Mobility ब्रितानी Advanced Electric Machines की तकनीक से मिलकर एक ऐसा मोटर विकसित कर रही है जिसमें rare-earth मग्नेट नहीं होंगे। इस मोटर को सात भारतीय ऑटोमेकर देख रहे हैं, और अगर टेस्टिंग सफल हुई तो व्यावसायिक उत्पादन अगले एक साल में शुरू हो सकता है – जो कि पहले से तय 2029 के लक्ष्य से कई साल आगे है।

स्टार्टअप्स भी पीछे नहीं हैं। बैंगलोर की “Chara Technologies” ने 2-पहिया, 3-पहिया और छोटे वाहन वर्गों के लिए rare-earth-free मोटर्स और कंट्रोलर विकसित किए हैं। फिलहाल ये मॉडल फील्ड टेस्टिंग के दौर में हैं। प्रदेशों में यह देखा जा रहा है कि इन मोटर्स और उनके software/control algorithm पर काम होने लग गया है।

शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी भी महत्वपूर्ण है। IIT Bhubaneswar ने Numeros Motors के साथ मिलकर non-magnet motor topologies पर शोध आरंभ किया है, ताकि भविष्य में EV मोटर्स इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए अधिक सस्ते, टिकाऊ और घरेलू सामग्री-आधारित हों।

एक अन्य उदाहरण है VNIT नागपुर का, जहाँ rare-earth-free तकनीक विकसित की गई है, जो मोटर्स को लगभग 25% सस्ता बनाने का दावा करती है, जबकि उनकी प्रदर्शन क्षमता (performance) चीनी मॉडल्स जितनी या करीब होगी।

इस पहल के पीछे की बड़ी वजह है supply chain जोखिम। चीन अब rare earth संसाधनों के निर्यात पर अधिक नियंत्रण रखता है, और दुनिया भर की EV निर्माता कंपनियों को यह चिंता बढ़ गई है कि भविष्य में इन सामग्रियों का अभाव या महंगाई उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। भारत ऐसी स्थितियाँ होने से पहले ही बैकअप टेक्नोलॉजी और वैकल्पिक डिजाइन तैयार करना चाहता है।

नीति स्तर पर भी बदलाव हो रहे हैं। भारत सरकार rare-earth मग्नेट्स की घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन (fiscal incentives) देने की योजना बना रही है। इस तरह की योजनाएं mining, processing और component निर्माताओं को समर्थन देंगी ताकि उद्योग तेज़ी से आत्म-निर्भर बने।

संभावित असर और चुनौतियाँ

यह परिवर्तन भारत के EV उद्योग के लिए कई मायनों में लाभदायक हो सकता है:

  • उत्पादन लागत घट सकती है क्योंकि rare earth magnets महंगे और आयात-पर निर्भर हैं।
  • EV मॉडल्स का बढ़ावा होगा क्योंकि supply risk कम होगा।
  • घरेलू टेक्नोलॉजी, शोध तथा स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोजगार व स्थानीय इनोवेशन बढ़ेगा।

लेकिन चुनौतियाँ भी हैं:

  • rare-earth-free मोटर्स अभी performance, compactness और efficiency के मामले में rare-earth वाले मोटर्स से पीछे हो सकते हैं, खासकर high torque और lightweight डिज़ाइनों में।
  • निर्माण और कंट्रोल सिस्टम (power electronics, software) में सुधार की ज़रूरत है ताकि मोटर responsive और reliable हो।
  • परीक्षण (testing), certification और बड़े पैमाने पर उत्पादन (scale-up) तक पहुंचने में समय लगेगा।

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