भारत में केंद्र सरकार की नई EV (Electric Vehicle) निर्माण नीति ने विदेशी EV निर्माताओं के लिए आकर्षक प्रोत्साहन पेश किए हैं, लेकिन एक बड़ा अवरोध भी सामने आया है – ₹4,150 करोड़ की बैंक गारंटी। इस गारंटी की मांग पॉलिसी के हिस्से के रूप में की गई है ताकि कंपनियाँ अपनी निवेश की प्रतिबद्धताओं और स्थानीय उत्पादन-(localization) लक्ष्यों को पूरा करें। यदि ये लक्ष्य पूरी तरह से नहीं मिलते हैं, तो सरकार इस बैंक गारंटी को जब्त कर सकती है।
पॉलिसी में तय है कि EV निर्माता कम-से-कम ₹4,150 करोड़ निवेश करें और तीन साल के अंदर भारत में निर्माण इकाइयाँ स्थापित करें। उसी अवधि में 25% Domestic Value Addition (DVA) यानी घटकों की स्थानीय सोर्सिंग होनी चाहिए; और पाँच साल के अंदर यह बढ़कर 50% होनी चाहिए। ऐसे में कंपनियों को मौजूदा उपकरणों, मनपसंद तकनीकों और सप्लाई चेन को भारत के अंदर विकसित करना होगा।
यह बैंक गारंटी उन मामलों में लागू होगी जब निर्माता वह शुल्क माफ (Duty Forgone) प्राप्त कर रहे हों – अर्थात्, उन EVs को कम कस्टम ड्यूटी पर इम्पोर्ट करने की अनुमति मिले हो – या सरकार द्वारा तय न्यूनतम निवेश लक्ष्य हो। यदि निर्माता तय समय पर ये प्रतिबद्धताएँ पूरी नहीं कर पाते हैं (निवेश, DVA लक्ष्यों आदि में चूक), तो सरकार बैंक गारंटी को ज़ब्त कर सकती है।
लेकिन इस उच्च बैंक गारंटी की मांग ने कई कंपनियों को संभलने पर मजबूर कर दिया है। कुछ विदेशी निर्माताओं ने इस नीति को “non-starter” कहा है क्योंकि ₹4,150 करोड़ निवेश + समान बैंक गारंटी लगाना उनके लिए जोखिम भरा है। बहुत सी कंपनियाँ इस नीति के प्रावधानों का विश्लेषण कर रही हैं ताकि यह पता चले कि वो शर्तों को पूरा कर पाएँगे या नहीं।
नीति का उद्देश्य सही है – भारत में EV उद्योग को मजबूत करना, आत्मनिर्भरता बढ़ाना और “Make in India” को वास्तविक रूप देना। लेकिन नीति-निर्माताओं को यह भी ध्यान देना होगा कि अवरोध बहुत अधिक न हों, ताकि निवेशक भारत आने में हिचकिचाएँ न हों। उदाहरण के लिए, बैंक गारंटी राशि इतनी ऊँची है कि यह छोटे-मध्यम वाहन निर्माता या नए स्टार्ट-अप्स के लिए आर्थिक रूप से भारी पड़ती है।
निष्कर्ष यह है कि भारत की नई दी गई EV नीति एक संतुलित दृष्टिकोण लेती है: लाभ दिए जाएँ लेकिन प्रतिबद्धताएँ भी हों। बैंक गारंटी ऐसी व्यवस्था है जो सरकार को सुरक्षा देती है कि किसी भी तरह की धोखाधड़ी या अधूरी पूर्ति न हो। लेकिन यदि यह गारंटी और निवेश आवश्यकताएँ बहुत ज़्यादा हों, तो वह नीति के मकसद – अर्थात् अधिक EVs उत्पादित होना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण होना, और इन्फ्रा-स्पर्धा बढ़ना – को हिल सकती हैं क्योंकि कई कंपनियाँ इस चुनौती को स्वीकार नहीं करेंगी।
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